White palace in India( वैर के सफेद महल)


 सफेद महल-वैर

White palace in India



‘‘जाट और मुगल शैली का उत्कृष्ट स्थापत्य है वैर का सफेद महल’’

सन् 1725 में भुसावर, बयाना और उच्चैन के मध्य भाग में वैर परगना बना और प्रतापसिंह इसके राजा नियुक्त हुए। उस समय वैर परगना 5 लाख रूपये वार्षिक की जागीर थी। सन् 1726 में टीले पर किला, उत्तरी पार्ष्व फुलवाडी व श्वेत महल तथा पष्चिमी पार्ष्व में जलागार बनाया गया। यह जाट और मुगल स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। निर्माण करीब 4 वर्ष में हुआ। 30 बीघा भूमि में पक्की कलात्मक क्यारियां बनाई गई, जिसमें केषर उगाई जाती थी। 

सफेद महल :- प्रताप दुर्ग के पष्चिमी भाग में 42 बीघा क्षेत्र में फैली ऐतिहासिक प्रताप फुलवाडी के बीचों-बीच विष्व धरोहर के रूप में शान्ति और एकता का प्रतीक श्वेत महल बना हुआ है। इसके अग्र भाग में बंगाली व मुगल शैली के स्थापत्य कला के प्रतीक फव्वारे लगे हुए हैं। सफेद महल और केषर क्यारियां राजा प्रतापसिंह की सैरगाह थी। कभी इस प्रताप फुलवाडी में फालसे तथा अंजीरों के पेड बडी संख्या में मौजूद थे। 




जल कुण्ड एवं फव्वारे :-  श्वेत महल के ठीक सामने पानी का बडा पक्का सरोवर आज भी है। जिसमें व्यवस्थित फव्वारे लगे हुए हैं। श्वेत महल के उत्तर दिषा में लाल महल तथा दक्षिण दिषा में मदनमोहन जी का कलात्मक मंदिर अपनी भव्यता की कहानी कहते दिखाई देते हैं। इस ऐतिहासिक विरासत के आगे चन्द्रमा की चांदनी भी अपने आपको लजाती प्रतीत होती है। 


छोटी काषी (लघु काषी ) :- सन् 1960 में एक षिवलिंग, मोहनजोदडो शैली का ढक्कन, कुषाण कालीन लकडी की प्रतिमा, पार्ष्वनाथ की प्रतिमा, गुलामवंष का षिलालेख मिला था। 1971 में 10वीं शताब्दी की चकेष्वरी देवी की प्रतिमा मिली थी। वैर कई संस्कृतियों का हिस्सा रहा है इसलिए इसे छोटी काषी (लघु काषी) कहा जाता है।

अनूठी केषर क्यारिया :- सफेद महल के सामने तथा मदनमोहन मन्दिर एवं लाल महल के सामने धरातल पर रियसासत काल में बनी चूने की लाजबाव केषर क्यारियां कला की दृष्टि से दर्षकों का मनमोह लेती हैं। 25 डिग्री तापमान नियंत्रित करने के लिए केषर क्यारियों को फूस से ढ़का जाता था। केषर क्यारियों की बनावट भी अलग-अलग डिजाइन व तरीके की हैं। क्यारियां त्रिकोणीय, पंचकोणीय, चौकोर, पत्ती, बेल की आकृति में हैं। एक क्यारी में पानी चलाने पर सभी क्यारियों में पानी आसानी से पहुंच जाता है। यह अनमोल विरासत पर्यटकों की नजर से दूर है। वैसे हाल ही में पुरातत्व विभाग द्वारा 4.27 करोड की राशि से कराये गये संरक्षण कार्य से निखार आया है। केषर क्यारियां नैसर्गिक सौन्दर्य से कष्मीर घाटी मानिन्द जयपुर के आमेर महल और भरतपुर के वैर कस्बे के सफेद महल के पास में केषर उगाने के प्रयास भले ही सफल नहीं हो पाये लेकिन पुरामहत्व के स्थलों पर बनी केषर क्यारी आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। यह भी संयोग है कि 17वीं शताब्दी में निर्मित आमेर के शीष महल एवं सुख निवास में ताजी और महकती खुषबू के लिए इन केषर क्यारियों की रचना की गई। यह माना जाता है कि वैर के राजा प्रतापसिंह स्पेन से केषर के पौधे लाये थे। जिनके लिए सफेद महल के निकट केषर क्यारी बनाई गई थी। इनका आकार आमेर की केषर क्यारियों से काफी बडा था। विडम्बना यह है कि आमेर महल और केषर क्यारी देखने के लिए देष-विदेष के पर्यटकों की लम्बी कतारें लगती हैं किन्तु वैर अभी तक पर्यटन स्थल घोषित होने की बाट जोह रहा है। प्रताप दुर्ग, सफेद महल और अनूठी केषर क्यारियों के जीर्णोद्धार से निखरा यह स्थल भी आमेर की तरह शैलानियों को लुभाने में पीछे नहीं रहेगा। सफेद महल की उलटी छत पर करायी गई मीनाकारी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती नजर आती है।

प्रताप फुलवाडी प्रताप दुर्ग (किला) :- भरतपुर से 50 किलोमीटर दूर दक्षिण-पष्चिम में स्थित कस्बा-वैर प्रस्तर कला, वास्तुकला, चित्रकला व मूर्तिकला का बेजोड नमूना है। यहां की केषर क्यारियों की अद्भूद कलात्मक बनावट ऐसी है कि देखने वाला अपने आपको ठगा सा महसूस करता है। सफेद महल एवं प्रताप दुर्ग की स्थापत्य कला और दुर्ग के चारो तरफ फैली प्रताप गंगा नहर हर आने वाले दर्षकों को अपनी ओर आकर्षित करती नजर आती है। भरतपुर के संस्थापक राजा सूरजमल के छोटे भाई प्रतापसिंह ने 1726 ई. में वैर गढ की नींव डाली। राजा प्रतापसिंह द्वारा बसाया गया ऐतिहासिक कस्बा-वैर अमूल्य ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है।

किला वैर संरक्षित क्षेत्र एवं सुरक्षित स्मारक :- राज्य सरकार ने कस्बा-वैर की ऐतिहासिक धरोहरों प्रताप दुर्ग, प्रताप फुलवाडी, सफेद महल, लाल महल, केषर क्यारियां तथा मदनमोहन जी मन्दिर को वर्ष 1986 में संरक्षित क्षेत्र और सुरक्षित स्मारक के रूप में घोषित कर रखा है। इस विरासत को मूल रूप में लाने के लिए राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा जीर्णोद्धार कार्य कराया गया था जिससे विरासत दमकने लगी थी लेकिन अचानक जीर्णोद्धार कार्य बंद होने कारण तथा देखरेख के अभाव में प्रताप फुलवाडी में पुनः अतिक्रमण करने तथा पषुओं को बांधे जाने तथा वेसकीमती जालियों को तोडा जाकर गोबर के उपले थपने लगे। ं 

प्रताप फुलवाडी की सफाई कार्य श्री आलोक रंजन आईएएस, 

स्वच्छ केषर क्यारियां दिखाते हुए 




प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. रांगेय राघव ने वैर को अपनी कर्म भूमि बनाकर 39 वर्ष के जीवन में कविता, कहानी, उपन्यास, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, नाटक, निबंध आदि विधाओं में 150 कालजयी कृतियों का सृजन किया। महाराजा प्रतापसिंह साहित्यानुरागी थे और विद्वजनों के संरक्षक थे। महाकवि सोमनाथ जैसी हस्तियों के कारण वैर को लघुकाषी कहा जाता है। लघुकाषी वैर में संत सिरोमणी बाबा मनोहरदास जी की तपोस्थली रही है। जिनका तपोधूना, समाधी स्थल एवं भव्य मन्दिर प्रताप किले के उत्तरी द्वार से नीचे स्थित है। 

संत सिरोमणी बाबा मनोहरदास जी डॉ. रांगेय राघव

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