Bayana fort (किले)
भारत के गौरवपूर्ण इतिहास में भारत के किलों का महत्वपूर्ण स्थान है विविधता में एकता को समेटे हुए यह देश विश्व के अन्य देशों के साथ अपने गौरवपूर्ण अतीत को अपने आंचल में संजोये है
Red fort of India (भारत के लाल किले)
जब बात भारत के लाल किलों की हो तो दिल्ली एवं आगरा के साथ बयाना का नाम अनायास ही जुड जाता है बयाना वर्तमान में india के क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बडे़ राज्य Rajasthan के भरतपुर का एक उपजिला है यह World sanctuary (घनापक्षी विहार भरतपुर) से मात्र 52 km की दूरी पर स्थित एक प्रमुख कस्बा है यहाँ पर राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की वस एवं भारतीय रेल की सेवाओं से आसानी से जाया जा सकता हैं बयाना गुप्त काल से पूर्व नील नगरी के नाम से जाना जाता था प्राचीनकाल में बयाना एशिया की सबसे बड़ी मंण्डी के रूप में जाना जाता था यहाँ पर एक खम्बा पर स्थित गरुड़ मंदिर विश्व की एकमात्र कलाकृति है उषा मंदिर, उषा मस्जिद, जहागीर दरवाजा, झजरी, सहित अनेको प्राचीन काल के एतिहासिक दर्शनीय स्थल है
Bayana fort (बयाना का किला)
बयाना गुप्त कालीन नगर है परन्तु बयाना का किला महाभारत कालीन होने के प्रमाण मौजूद है भले ही पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस बात की पुष्टि नहीं कर पाया हो पर आम लोगों द्वारा इस बात की पुष्टि यहा मौजूद अन्य स्थानों के नाम के आधार पर की जाती रही है एक किवदंती के अनुसार यह महाभारत कालीन युद्ध स्थल रहा है पांडबो की विजय के उपरांत यहाँ का शासन नकुलबलदेव को सुपुर्द कर दिया गया था उसके उपरांत 360 AD में यौद्धेय जनपद के महाराजा महासेनपति के शाशन किये जाने का उल्लेख यहाँ उपलब्ध शिलालेख के अनुसार पाया गया है इस किले श्रीपंथ, बाणासुर का किला, बिजयगढ, विजयमंदिरगढ, गोपालगढ, मंधीरगढ आदि अनेक नामों से प्राचीनकाल का भारत की एतिहासिक पुस्तकों में पाया जाता है इसके पश्चात 372 AD में बिष्णुबर्धन द्बारा पुण्डरीक के self sacrifice का उल्लेख मिलता है बिष्णुबर्धन समुद्र गुप्त का जागीरदार था
बयाना की रमणीक सुन्दरता इस किले में चार चाँद लगाने का कम करती है यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम है
अरावली की पहाडियों के मध्य बना यह किला सामरिक द्रष्टि से उत्तरभारतीय राजाओ के लिये बड़ा मह्त्त्बपूर्ण रहा है १५२७ ईश्वी में मुगलों की भारत में राज्य सत्ता की स्थापना का निर्णायक युद्ध खानुआ में लड़ा गया जिसमे बाबर विजयी हुआ था ततात्कालिक समय पर यह किला मेवाड़ शाशक राणा सांगा के अधिकार क्षेत्र में आता था १५२६ में जब राणा सांगा एवं बाबर के मध्य बयाना का युद्ध लड़ा गया तो उसमे राणा सांगा विजयी हुआ था माना जाता है की यह किला अजेय रहा है
इसके आसपास लगभग शताधिक गुर्जरों के गाँव स्थित है गुर्जर समुदाय प्राचीन काल से ही प्रखर योध्धा के रूप में जाना जाता है जो इस किले की अजेयता का महत्तबपूर्ण कारक भी है यहाँ पर ग्यारहवी शताब्दी से पूरब गुर्जर प्रतिहार वश शाशन कर्ता था ३७०-७१ में विश्व का प्रथम विजय स्तम्भ समुद्रगुप्त द्वारा यहाँ पर स्थापित किया गया था वर्धन वंश के शाशक द्वारा पुंणरीक की याद में लाल एकाश्म पत्थर से निर्मित स्तम्भ जिसे आज भीमलाट के नाम से जाना जाता है यह एक 26.3 फीट ऊंचा स्तम्भ हैं इसका प्रथम भाग अष्टकोणीय है जो 22.7 फीट ऊंचा है शेष भाग गोलाकार है इसके शिखर पर लगी धातु शलाका सम्भवतः राज्य की ध्वज पताका फहराने के लिए लगाई गई थी fort of jaisalmer interior की तरह ही इस किले की interior भी दर्शनीय है

किले की पुष्ट चार दीवारी का कार्य निर्माण गुर्जर प्रतिहार वंश के शाशक राजा महिपाल गुर्जर के शाशनकाल में करबाया गया राजा महिपाल के शाशनकाल में लक्ष्मण सैन की पत्नी चित्रलेखा ने उषा मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया था बयाना स्थित उषा मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ जो की भूमि के अन्दर आज भी सुरक्षित दशा में है प्राप्त पांडू लेखो के अनुशार महिपाल गुर्जर छावडी गोत्र से आते है बी .ए .स्मिथ के अनुसार भीनमाल शाखा के शाशक ब्याघ्रमुख[ 690-642] छावडी वंश के प्रथम शाशक थे यह गुजरात का प्रमुख राजवंश था महिपाल गुर्जर के पुत्र विजय पाल द्वारा 999 ईसवी से 1043 ईश्वी तक यहाँ शाशन किये जाने के प्रमाण प्राप्त हुए है जिनके पुत्र नहपाल द्वारा नहरौली बसायी गयी थी आज भी किले के आसपास इस गोत्र के लोगो के 8 गाँव बसे हुए है 961 ईश्वी में जब दिल्ली के राजा गोपाल देव थे जो की गुर्जरों के तंवर गोत्र से आते थे परन्तु उच्चारण त्रुटी के कारण उन्हें तोमर कहा जाता था राजा के साथ गोत्र लगाने की चाहत में अनेको समर्थको द्वारा गोत्र {यह एक सरनेम है } लगाये जाते थे इतिहास को तोड़ मरोड़कर पेश किये जाने की प्रबृति तात्कालिक इतिहासकारों में पायी जाती थी इसी भ्रम के कारण यह सब घटित हुआ एसे भी इस बात से कोई ताल्लुक नहीं है की अनंगपाल तोमर था या तंवर यहाँ पर उल्लेखित विन्दु यह है कि गोपालदेव तंवर के वंशजो द्वारा तंवर गोत्र के गाँव यहाँ वसाए गए जिनके 12 गाँव आज भी किले के आस पास मौजूद है
गुलाब कुंड
जन मान्यताओ के अनुसार इस वावडी का निर्माण किले के निरमाण के साथ ही करवाया गया था यह किले में एकमात्र पेयजल का उपलब्ध श्रोत है इस वावडी का जल कभी सूखता नहीं है इसका पुनुरुधार श्री गुलाब जी द्वारा करवाया गया था इसलिए आज लोग इस वावडी को गुलाब वावडी के नाम से जानते है वर्तमान में पुरातत्व विभाग की उपेक्षा का शिकार यह किला अपने अस्तित्व के लिये लड़ता हुआ नजर आ रहा है
यहाँ का एक प्रमुख आकर्षण यहाँ पर स्थित एक बारह खम्बो पर स्थित दो मंजिला भवन है जिसे बारहदरी के नाम से जाना जाता है
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