जाति और धर्म क्या है❓
Towards humanity (मानवता की ओर संदेश) :- मानव प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति है मानव ही पृथ्वी पर एक ऐसा प्राणी है जो कि सभी की भावना को समझ सकता है। हम सब प्रकृति में ही पलते बढ़ते है अन्ततः प्रकृति में ही विलीन होते हैं । आखिर क्यों मानव मानव में भेद है कोई अमीर, गरीब ,काला, गोरा, उच्च कुल,निम्न कुल, भिन्न जाति, धर्म, लिगं आखिर किसने बनाया ये सब ताना बाना , प्रकृति ने तो नहीं बुना ये ताना बाना आखिर किसने ❓ यह बात हम सब जानते हैं फिर भी ये सब करते हैं बड़े शौक से और प्रदर्शित भी करते हैं। आपस में एक दूसरे को उच्च निम्न साबित करने में लगे हैं और तो और कुछ लोग तो जाति एवं धर्म के नाम पर हत्याये भी कर देते हैं जब प्रकृति ही जीवों में भेदभाव नहीं करती तो हम मानवों में क्यों । मेरा मानना है कि सभी को जियो और जीने दो की भावना पर बल देेेते हुए मानवतावाद पर बल देना चाहिए ताकि जीवन को बेेेहतर बनाने के बारे में तरह तरह सम्भावनाओ पर बल दिया जा सकें
इस प्रकार की वेवजह वेबकूफी का जीवन से कोई ताल्लुक नहीं है परन्तु मुझे लगता है कि जीवन को सही मायने में समझा ही नहीं गया क्योंकि जीवन हमेशा हर जगह एक ही रूप में मौजूद रहा है दुर्भाग्य से कुछेक स्वार्थी लोगों के द्वारा इसे इतना जटिल वना दिया गया है बैसे मानव की जीवन को विभेदित करने की प्रवृति रही है पहले सजीव और निर्जीव फिर जलचर थलचर एवं नभचर फिर जीव जन्तु एवं मानव फिर नर नारी यहाँ तक जो वर्गीकरण किया गया उसके पीछे एक तार्किक सोच थी परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तब उतपन्न हुईं जब इंसान ने मानवता के टुकड़े करने की कोशिश करना शुरू शुरू में नर और नारी फिर गरीब अमीर कमजोर ताकतवर के रूप में इंसान का वर्गीकरण सामने आया
मानवतावादी सोच धीरे धीरे धर्म की ओर वढती गई तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार ईश्वरौ का वर्गीकरण कर लिया बात यहाँ तक भी नहीं रुकी एवं जीवन के निम्नतम स्तर वर्ण व्यवस्था एवं जातियों का अविष्कार किया गया ताकि अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित किया जा सके परिणाम स्वरूप इंसान के द्वारा संचालित संसार से इंसानियत समाप्त होतीं चली गई
जरा सोचिए सम्पूर्ण अनन्त ब्रह्माण्ड की रचना करने बाला परमात्मा क्यों कहा जाता है परममानव क्यों नहीं ऐसा इसलिए है कि हम जानते हैं कि सिर्फ मानव ही इस सृष्टि की रचना नहीं है तो फिर हमें यह भी जानना चाहिए या यूँ कहिये कि जानना पडेगा कि यदि इंसानों का ईश्वर इंसान जैसा होता तो जानवरों का ईश्वर कोई बडा सा जानवर होता फिर आपके वर्गीकरण के अनुसार तो जलचर थलचर एवं वर्ण व्यवस्था एवं जातियों तक अनगिनत ईश्वर होते क्या एसा मानना मूर्खता नहीं तो और क्या है
इस सम्पूर्ण सृष्टि में सिर्फ और सिर्फ जीवन का अस्तित्व है और अस्तित्व का वर्गीकरण किसी भी रूप में किया जाना निहायत वेबकूफी भरा काम होगा जीवन का काम सिर्फ जीवन ही है
मोक्ष सिर्फ अस्तित्व को जानना है मानना नहीं आप सभी से आशा है आप सृष्टि में जो भी जैसा घटित होता है उसे वैसा ही देखने का प्रयास करेंगे
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